मेरी कल्पना का संसार
Friday, September 12, 2014
Andaz-e-bayan
जज़्बातों के इन गुलिस्तां में,
शामियाना गर इक नसीब होता,
न हम इस रंज-ओ-ग़म के शिकार होते|
न इन स्याहियों के हम पे निशाँ होते|
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